Madhu varma

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लेखनी कविता -कबूतर - बालस्वरूप राही

कबूतर / बालस्वरूप राही


जब देखो गर्दन मटकाते,
गुटर-गुटरगूँ गीत सुनाते।
दाना डालो, झटपट आते,
पास पहुँचते ही उड़ जाते।

रहते मिलकर सभी कबूतर,
नहीं झगड़ते कभी कबूतर।

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